जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो, भाग 1

आज मैं बहुत खुश थी, जो मैंने चाहा था जो सपने देखे थे आज वो पूरा होने वाला था,

रात की मेरी ट्रेन थी वो भी दिल्ली की, मैं दिल्ली घूमने नहीं जा रही थी वहां से मेरे लिए नौकरी का ऑफर आया था, दिल में काई सपने सजाए, सुबह से मैं पैकिंग में लगी थी, अम्मी ने भी नसीहतों का पूरा लिस्ट सुना दिया, ये मत करना वो मत करना, ये मत खाना बाहर का मत खाना, ठीक से रहना लोगो से झगड़ना मत, सबसे प्यार से रहना, वगैरा वगैरा।
 
अब ट्रेन के स्टेशन पर आने में 2 घंटे बाकी थे, और घर से स्टेशन का रास्ता 1 घंटे का, फिर भी हम निकल गए कि बस ना छूट जाए, सबको सलाम करते हुए निकल कर रोड तक गए वहां भी सब मेरे साथ आए, अम्मी भी और स्टेशन पे मेरे साथ मेरे अब्बू आने वाले थे बस जल्दी ही आ गई हम स्टेशन के लिए निकल गए। 
आधे रास्ते में बस रुकी और कोई बस रोक कर खड़ा हो गया समान लोड करने लगा फिर घर वालों से बात करने लगा, मुझे ये सब देख कर गुस्सा आ रहा था पर क्या करती अब्बू जो मेरे साथ थे, अब्बू से डर भी बहुत लगता था , वरना तो उसके बाल खींच के निकल देती, फिर एहसास हुआ कि ये सब तो मेरे आने से भी पहले हुआ था, लगता है ये भी दूर जा रहा हो पहली बार इसलिए, ये सोच ही रही थी कि आवाज आई अब जाता हूँ नहीं तो रेलगाड़ी निकल जाएगी फिर मेरे जान में जान आई चलो, वो भी ट्रेन पकड़ने ही जा रहा था। Shabnam

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